मंगलवार, 18 अक्तूबर 2016

इलैक्‍ट्रोहोम्‍याेपैथिक एन्‍जाईटिकोज (ब्‍लड रिमेडीजद)

                           इलैक्‍ट्रोहोम्‍याेपैथिक 
               एन्‍जाईटिकोज (ब्‍लड रिमेडीज  
                 ,sUtkbZfVdkst ग्रुप की दबाओ को हम रक्‍त रिमेडिस या रक्‍त संस्‍थान की औषधियॉ भी कह सकते है । इस औषधि का का प्रभाव रक्‍त संस्‍थान एंव हिद्रय पर होता है । अत इस दबा का प्रभाव रक्‍त एंव रक्‍त से सम्‍बन्धित अंगों व अवयवों पर होता है । जिस प्रकार से एस0 -1 औषधी रस के विकारों पर कार्य करती है ठीक उसी प्रकार ए0 1 रक्‍त प्रकृति या रक्‍त से सम्‍बन्धित उत्‍पन्‍न होने वाले रोगों पर कार्य करती है । 
  रक्‍त प्रकृति के रोगियों के प्रदाह युक्‍त रोगों अथवा ज्‍वरो में नियम केे अनुसार ऐन्‍जाईटिको सबसे आवश्‍यक है । प्रारम्‍भ में एंजियाईटिकों रक्‍त प्रकृति वाले रोगियों में बहुत सावधानी से प्रयोग करना चाहिये अर्थात तीसरे डायलुशन से कम में न देकर बाद मे दूसरे और प्रथम पर जाना चाहिये । 
    जब एन्‍जायटिकों औषधी का प्रयोग करना हो तब एस01 औषधि के प्रयोग से पहले लिम्‍फ के कार्य नियमित हो जाते है एंव एन्‍जायटिकों के लिये रास्‍ता साफ हो जाता है । अत ए ग्रुप की दबाओं के पूर्व एस01 दबा के प्रयोग से ए ग्रुप की दबा अपना अभिष्‍ट परिणाम दिखलाती है । इसलिये एनजाईटिकों दबा के पहले एस 1 देने की सिफारिश की गयी है । डाॅ0 सिन्‍हा सहाब ने लिखा है कि जहॉ कही एन्‍जाईटिको के प्रयोग करने की आवश्‍यकता हो  वहॉ रोगी की शक्ति को उत्‍तेजित करने के लिये एस-1 का प्रयोग थोडी देर के लिये आवश्‍यक है । ए01 का पहला डायल्‍युशन रक्‍त संचालन को बढाता है और कही रक्‍त प्रवाह हो रहा हो तो उसकोो तीब्र कर देता है । रक्‍त संचालन पर एन्‍जाईटिको के लाईटर डयलुशन  का कोई प्रभाव नही है तीसरी और इससे भी उॅचे डायलुशन रक्‍त संचालन के हिद्रय की गति कम करके बंद कर देती है और इस प्रकार यदि कहीं रक्‍त प्रवाह हो तो बन्‍द कर देता है ।
प्राकृतिक गुण इस औष‍धी के प्राकृतिक गुण रक्‍त प्रवाह को बन्‍द करने वाली एसिड नाशक बाई नाशक हिदय पर प्रभाव डालने वाली बात नाशक कफ निकालने वाली स्‍तम्‍भक क्षय रोग नाशक ऐठन को दूर करने बाली पित नाशक है । यह दबा रक्‍त पित्‍त प्रकृति के लिये अनुकूल है । रक्‍त संचार के अवयवों धमनी शिरा कोशिकाओं नाडियों पर है रक्‍त संचार को ठीक करती है । इस समुह का प्रथम डायलुशन रक्‍त गति को बढाता है मासिक धर्म की कमी को तीब्र करता है तीब्र ज्‍वर व रक्‍त प्रवाह में प्रथम डायल्‍युशन का प्रयोग नही करना चाहिये इसका द्वितिय डायल्‍युशन मासिक धर्म को ठीक करता है ।  रक्‍त गति तीब्र हो तो मन्‍द करता है । यदि मन्‍द हो तो तीब्र करता है इस लिये द्वितिय डाय0 रक्‍त प्रवाह व रक्‍त  को जमने नही देता ।इसका तृतिय डाय0 हिद्रय रोगियों में प्रयोग किया जाता है रक्‍त की तीब्र गति को कम करता है । स्‍त्रीयों की  एम सी को अगर मन्‍द हो तो तीब्र करता है रक्‍त प्रवाह को रोकता है । नाडी यदि तेज चल रही हो तो उसे ठीक करता है । 
नोट लाल रक्‍त कण रक्‍त के अम्‍ल क्षाार के सन्‍तुलन को बनाये रखता है लाल रक्‍त कण रक्‍त के ऋणायन तथा धनायन में सन्‍तुलन रखने में सहायता करता है ।  
  

                      ,UtkbZfVdks &1एन्‍जाईटिकोज-।
 1- यह औष‍धी हिद्रय के धमनीयों पर कार्य करती है अर्थात महाधमनी एंव धमनियों पर बाई तरफ
  2-इस प्रकार धमनी पर इसका कार्य है धमनी में शुद्व रक्‍त प्रवाह होता है जो लॅग एंव लीवर से होता हुआ शरीर के आधे बाये भाग से आर्टरी के माध्‍यम से जाता है वहॉ पर इस दबा का प्रभाव देखा जाता है । 
3-रक्‍त प्रवाह धमनियों में यदि ठीक से न हो तो उसका रंग नीला पीला दिखलाई देेता है हाथ व पैर ठण्‍डे रहते है ।
4-धमनियों में रक्‍त के बहान न होने से उस पर जो सूजन हो जाती है या रक्‍त की कमी के कारण होने वाले रोग रक्‍त प्रवाह में रूकावट रक्‍त का मस्तिष्‍क में संचय बबासीर में रक्‍त आना मलद्वार से रक्‍त प्रवाह 
 5-यह जैसा कि रक्‍त से सम्‍बन्धित बेसीक्‍युलर रक्‍त धमनियों पर प्रभावी रक्‍त वाल संस्‍थान पर प्रभाव
 6-यह रक्‍त को शुद्व कर रक्‍त संचार को ठीक करती है रक्‍त की सूजन में प्रयोग की जाती है सामान्‍यत रक्‍त प्रकृति वालो के रक्‍त सम्‍बन्धिी रोगो में यह बहुत ही लाभदायक है साथ ही प्रकृति के अनुसार यह पित और वात प्रकृति बालो के लिये भी उपयोगी है 

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शनिवार, 7 मई 2016

नाभि चिकित्सा

                             नाभि रहस्य
नाभि के केन्द्र से हट जाने के कारण कई प्रकार की बिमारीया होती है ,असहजतामानसिक समस्याएंबुरे स्वप्नएवं मूत्राशय संबंधी समस्याएं भी उत्पन्न हो सकती हैं। महिलाओ की नाभि पुरुषो की अपेझा अधिक टलती है इसीलिये नाभी से सम्बधि रोग महिलाओ को पुरुषो अपेझा अधिक  होते है
   नाभि के बिना मनुष्य की कल्पना तक नहीं की जा सकती। उदर (पेट) पर स्थित नाभि बहुत ही रहस्यमयी है। माता के गर्भ में नवजात बालक का सबसे पहले नाभि केन्द्र ही विकसित होता है। गर्भ के बाहर आते ही सर्वप्रथम माता के शरीर से शिशु को जोडने वाली उस नली का सम्बन्ध विच्छेद करना होता है जो शिशु की नाभि से जुडी होती है। अगर किसी कारणवश जन्म लेते ही नाभि को माता से जोडने वाली नली को शीघ्र ही न काटा जाए तो बालक विकलांग भी हो सकता है।
नाभि का अपने स्थान पर रहना स्वस्थ्य का प्रतीक होता है किन्तु आजकल की जीवन पद्घति के कारण अधिकांश व्यक्तियों का नाभिकेन्द्र अपने स्थान पर प्राय: नहीं होता। लम्बे समय तक ऐसी स्थिति रहने पर जी मिचलाने लगता है, भोजन से अरूचि हो जाती है, पेट में मरोड तथा वायु की शिकायत हो जाती है। कई बार कब्ज एवं दस्त की स्थिति भी उत्पन्न हो जाती हैं।
नाभि के अपने केन्द्र से हट जाने पर हृदय में जलन, खांसी, अनिद्रा, तनाव, महिलाओं में मासिक असंतुलन, शरीर के निचले भाग में पीडा, आंतों की समस्या के साथ ही लिवर, पित्ताशय तथा दाहिनी किडनी भी प्रभावित होती है। इससे शरीर के ऊपरी बायें भाग पर दर्द एवं तनाव की अनुभूति भी हो सकती है। इसके कारण पैन्क्रियाज, जठर, प्लीहा, तक रोगग्रस्त हो सकते हैं।
लम्बर क्षेत्र के विकेन्द्रीकरण के कारण दाहिने पैर में दर्द हो सकता है। शरीर का दाहिना भाग प्रभावित होता है तथा किडनी तथा आंतों में खिंचाव, कडापन तथा दर्द की स्थिति भी उत्पन्न हो सकती है।

स्वस्थ नाभि का आकार गोलाकार, मांसपेशियां सुडौल तथा केन्द्र में स्पन्दन करने वाला होता है किन्तु नाभि अगर केन्द्र में स्थित न हो, त्वचा में लचीलेपन की बजाय कठोरता हो, नाभि सक्रिय एवं सजग न हो, नाभि एक तरफ खिंची हुई, उभरी हुई अथवा दबी हुई हो या उसका आकार स्थायी रूप से बदल गया हो तो यह उस व्यक्ति में लंबे समय से किसी न किसी रोग की तरफ इंगित करता है किन्तु जब परिस्थितियां अनियंत्रित हो जाती हैं, तब रोग के लक्षण बाहर दिखायी देने लगते हैं।
नाभि को प्राण ऊर्जा का केन्द्र बिन्दु माना जाता है क्योंकि यहीं से प्राण ऊर्जा का वितरण, नियंत्रण एवं संतुलन होता है। इसी कारण जब नाभि अपने स्थान से खिसक जाती है, तो सभी अंगों को मिलने वाली प्राण ऊर्जा का संतुलन बिगडने लगता है। किसी को आवश्यकता से अधिक तो किसी को आवश्यकता से बहुत कम ऊर्जा मिलने लगती है। फलस्वरूप उन अंगों की कार्यप्रणाली असंतुलित हो जाती है और अलग अलग लक्षण प्रकट होकर रोग के नामों से पुकारा जाने लगता है। इस असंतुलन को ठीक करते ही रोग नष्ट हो जाते हैं।
नाभि का खिंचाव अनेक प्रकार से हो सकता है। नाभि बांयी तरफ खिंचकर जा सकती है। इसी प्रकार नाभि का खिंचाव दाहिनी ओर, ऊपर की ओर, नीचे की ओर, बांए पुठ्ठे की तरफ, दाहिने पुठ्ठे की तरफ, ऑवरीज की तरफ, लिवर की तरफ तथा पैन्क्रियाज या तिल्ली की तरफ हो जाता है।
विशेषज्ञों के अनुसार कैंसर , मधुमेह, अस्थमा या हृदयाघात, गुर्दे का रोग ,  अचेतन की अवस्था, सभी में नाभि के केन्द्र को परखने के बाद ही उपचार करना चाहिए। नाभि के केन्द्र में स्थिर न रहने के कारण ही ये असाध्य रोग भी पनपते हैं।
नाभि को केन्द्र में लाने की अनेक विधियां अपने देश में प्रचलित हैं। वे सभी विधियां इतनी सरल हैं कि इसे अपने घर पर ही किया जा सकता है। नाभि का अपने केन्द्र में स्पन्दन करना स्वस्थ नाभि का प्रतीक है। अगर केन्द्र का स्पन्दन नाभि स्थल पर न हो, ऊपर-नीचे, दाएं-बाएं हो तो इसे नाभि का खिसकना या पेचुटि कहा जाता है।
नाभि को केन्द्र में लाने की विधि किसी अच्छे जानकार से सीख लेना हितकारी रहता है।